कविता / तीसरा आदमी / राजेन्द्र राजन

मैदान में जैसे ही पहला पहलवान आया

उसकी जयकार शुरु हो गई

उसी जयकारे को चीरता हुआ दूसरा पहलवान आया

और दोनों परिदृश्य पर छा गए

पहले दोनों ने धींगामुश्ती की कुछ देर

कुछ देर बाद दोनों ने कुछ तय किया

फिर पकड़ लाए वे उस आदमी को जो खेतों की तरफ़ जा रहा था

दोनों ने झुका दिया उसे आगे की ओर

अब वह हो गया था उन दोनों के बीच एक चौपाए की तरह

तब से उस आदमी की पीठ पर कुहनियां गड़ा कर

वे पंजा लड़ा रहे हैं

परिदृश्य के एक कोने से

कभी-कभी आती है एक कमज़ोर-सी आवाज़

कि उस तीसरे आदमी को बचाया जाए

मगर इस पर जो प्रतिक्रियाएं होती हैं

उनसे पता चलता है कि सबसे मुखर लोग

दोनों बाहुबलियों के प्रशंसक

या समर्थक गुटों में बदल गए हैं

– राजेन्द्र राजन

 

4 टिप्पणियां

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4 responses to “कविता / तीसरा आदमी / राजेन्द्र राजन

  1. arvind kumar singh

    kadwi sachchai bayan karti hai apki kavita.badhai.
    arvind kumar singh

  2. kulbir dahiya

    It is again great creation … your poems are reality … these are speaking to heart directly … these are not words there is something supernatural hidden in these words. I am greatful to you, I have felt these great truths.

  3. पिंगबैक: इस चिट्ठे की टोप पोस्ट्स ( गत चार वर्षों में ) « शैशव

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